Sunday 26 July 2020

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था का परिचय :- 

--> भारत में ब्रिटिश शासन स्थापित होने से पहले यहां की स्थिति काफी अच्छी थी , 
● यह देश अनाज के संबंध में आत्मनिर्भर था 
यहां अनेक प्रकार के उद्योग जैसे छोटे पैमाने के उद्योग की स्थिति काफी अच्छी थी 
● दूर-दूर तक इनके बाजारों का विस्तार हुआ 
● परिवहन के क्षेत्र में भी देश उन्नत था 
● व्यापार की स्थिति भी काफी अच्छी थी 
● ब्रिटिश शासन से पूर्व यहां की अर्थव्यवस्था का स्तर काफी ऊंचा था इसमें पर्याप्त संतुलन भी था 
लेकिन ब्रिटिश शासन स्थापित होने से यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई तथा देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़ाता चला गया


इस औपनिवेशिक शोषण को तीन चरणों में बांटा जा सकता है

1) पहला चरण :- यह चरण व्यापारिक पूंजी तथा औपनिवेशिक शोषण से संबंधित था

2) दूसरा चरण :- यह चरण औद्योगिक पूंजी व औपनिवेशिक शोषण से संबंधित था

3) तीसरा चरण :- यह चरण महाजनी पूंजी तथा औपनिवेशिक शोषण से संबंधित था

--> भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़े होने के कारण

1) परंपरागत कृषि 
2) बड़े स्तर पर पाए जाने वाली अशिक्षा 
3) कमजोर आधारभूत ढांचा 
4) सामाजिक सूचकांक मापदंडों का निचला स्तर 
5) उच्च शिशु मृत्यु दर 
6) भारतीय संपत्ति का बड़ी मात्रा में निष्कासन 
7) हस्तशिल्प का विनाश 
8) राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर 
9) पिछड़ा हुआ उद्योग या सेवा क्षेत्र 
10) जनसंख्या वृद्धि 
11) बड़े स्तर पर गरीबी व बेरोजगारी 
12) पिछड़ी व पुरानी तकनीक


अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण अवधारणाएं :-

1) पिछड़ी अर्थव्यवस्था 
2) विकासशील अर्थव्यवस्था 
3) विकसित अर्थव्यवस्था 
4) गति हीन अर्थव्यवस्था 
5) कंपायमानअर्थव्यवस्था

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृषि क्षेत्र 1947 

1) निम्न उत्पादकता :- उत्पादकता का स्तर बहुत ही निम्न था 
निम्न उत्पादकता का अर्थ है / उत्पादन का निम्न स्तर जबकि भूमि के बहुत बड़े क्षेत्र पर कृषि की जाती थी

2) उच्च संवेदनशीलता :- कृषि में अधिक संवेदनशीलता पाई जाती है क्योंकि इसकी वर्षा पर निर्भरता बहुत अधिक होती है

3) छोटी और खंडित जोत :- जोतें छोटी तथा खंडित थी अधिकांश जोतें अनार्थिक थी जिन पर उच्च लागत पर कम उपज होती थी

4) भूमि के स्वामी तथा उसे जोतने वाले किसान के बीच चौड़ी खाई :-ब्रिटिश शासन के दौरान कृषि की एक विशेषता यह भी थी कि भूमि के स्वामी तथा भूमि पर खेती करने वाले किसानों के बीच खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही थी

ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारतीय कृषि के पिछड़ेपन तथा गतिहीनता के महत्वपूर्ण कारक :-

1) ब्रिटिश राज में भू राजस्व प्रणाली
2) कृषि का व्यापारीकरण
3) पुरानी एव पिछड़ी तकनीक

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय औद्योगिक क्षेत्र

1) राज्य की विभेदमूलक कर नीति :- इस नीति के अंतर्गत बिना निर्यात शुल्क के भारत से कच्चा माल का निर्यात तथा बिना आयात शुल्क के ब्रिटिश औद्योगिक उत्पाद का भारत में आयात किया गया। परंतु भारतीय हस्तशिल्प उत्पाद के निर्यात पर भारी शुल्क लगाए गए

2) भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का पतन :- ब्रिटिश शासन ने अपने उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार की नीति अपनाई की भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों का पतन हुआ तथा वे पूरी तरह नष्ट कर दिया

3) उद्योगों का निराशाजनक प्रदर्शन :- उस समय उद्योगों का प्रदर्शन काफी खराब रहा

ब्रिटिश शासन के अंतर्गत विदेशी व्यापार

1) प्राथमिक उत्पादों का शुद्ध निर्यातक  :- भारत कच्चे माल तथा प्राथमिक वस्तुओं जैसे कच्चा रेशम , कपास , नील , ऊन ,चीनी इत्यादि का शुद्ध निर्यातक बन गया

2) व्यापार में आधिक्य परंतु अंग्रेजों के लाभ के लिए :- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय में व्यापार में आधिक्य तो हुआ लेकिन केवल उसका अंग्रेज को लाभ हुआ

3) भारत के विदेशी व्यापार का एक अधिकारी नियंत्रण :- अंग्रेजों ने भारत के विदेशी व्यापार नीति की रचना इस प्रकार की कि केवल अंग्रेजों को ही उससे लाभ हुआ

ब्रिटिश शासन के दौरान जनांकिकीय रूपरेखा

1) जन्म दर तथा मृत्यु दर :- जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही बहुत उच्च थे लगभग 48 तथा 40 प्रति हजार थे

2) शिशु मृत्यु दर :- एक वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु दर बहुत ऊंची थी यह लगभग 218 प्रति हजार थी

3) साक्षरता दर :- वह लोग जो लिख तथा पढ़ सकते हैं लगभग 16% थी यह भी सामाजिक तथा आर्थिक पिछड़ेपन की निशानी है जिसमें से स्त्री साक्षरता दर केवल 7% थी

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय व्यावसायिक ढांचा

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय आधारिक संरचना

1) आर्थिक परिवर्तन :- जैसे यातायात साधन,संचार,बैंकिंग,शक्ति,ऊर्जा

2) सामाजिक परिवर्तन :- जैसे शिक्षा,स्वास्थ्य तथा आवास सुविधाओं का विकास

भारत में ब्रिटिश शासन के कुछ धनात्मक पक्ष - प्रभाव

1) यातायात सुविधा का विकास 
2) बंदरगाहों का विकास 
3) डाक तथा टेलीग्राफ सेवा का विकास